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जहरीला चलन भाग - 1[ दहेज प्रथा पर आधारित]
दृश्य:प्रथम। अंक प्रथम। इस कथानक के सभी कहानी तथ्य पूर्णतया काल्पनिक है___ लेखक जहरीला चलन [ दहेज प्रथा पर लिखी कहानी] लेखक - केदारनाथ भारतीय अविनाश के टूटे- फूटे कच्चे मकान के बाहर बैंड – बाजों सहित बारात का आगमन होने में बस कुछ ही समय शेष बचे हुए हैं।झालर - मोतियों से जगमगाता हुआ वह विपन्न सदन, स्वयं में अति सौंदर्य धारण किए हुए शांत स्वरूपों में मुस्कुरा रहा है। सेवाराम दो - तीन बुजुर्गों के साथ अविनाश के एक छोटे से ड्राइंग हाल में बैठा हुआ धीरे - धीरे चाय की चुस्कियां ले रहा है।सभी के सिरों में पगड़ियां बंधी हुईं हैं। उनके दाएं बाएं जवान लड़कों और छोटे मोटे चतुर बच्चों का आना - जाना जारी है।किसी के हाथों में बाल्टी है तो किसी के हाथों में जग और गिलाश है । एक या दो बच्चों के हाथों में चाय की केतलिया है। आज यहां अविनाश की बहन रेखा का विवाहोत्सव है।वे रेखा के होने वाले ससुर है, जिनके चरित्रों में धन लोलुपता का वास है। अभी द्वार - पूजा निमित्त बाराती गणों और दूल्हे के वैनों को रोके हुए अव...
तुम संग – एक नई दुनिया | भाग 2|Tum sang - ek nai duniya| bhag 2
A story of love, struggle, and self-confidence..." कहते हैं, कुछ मुलाकातें सिर्फ इत्तेफाक नहीं होतीं… वे किस्मत के धागों से बंधी होती हैं। यह कहानी भी एक ऐसे ही प्यार की है, जो वक्त से परे है... एक प्रेम, संघर्ष और आत्म-विश्वास की कहानी... गाँव की गलियों में सन्नाटा था। हर दरवाज़ा, हर खिड़की, हर निगाह जैसे सुमन और अविनाश के बारे में जानती थी, मगर चुप थी। अब दोनों के लिए केवल सपने काफी नहीं थे—उन्हें हिम्मत और रास्तों की भी जरूरत थी। सुमन ने घर में कैद रहते हुए भी हार नहीं मानी। उसने अपनी पुरानी नोटबुक्स छुपाकर रखी थी। जैसे ही मौका मिलता, वह रात में चुपचाप छत पर जाकर पढ़ाई करती। उस शांत अंधेरे में, उसके भीतर उम्मीद की रौशनी जलती रहती। उधर अविनाश भी खेत में काम करने के बाद बचे हुए समय में जी-जान से पढ़ाई करता। उसकी आँखों के नीचे गहरे काले घेरे बन गए थे, पर उसकी आत्मा थकी नहीं थी। एक शाम, गाँव में एक नए स्कूल का उद्घाटन हुआ। सुमन को यह खबर सुनते ही उम्मीद की एक किरण दिखी। उसने अपनी माँ से आग्रह किया, “अम्मा, मुझे फिर से स्कूल जाना है। अगर पढ़ूँगी नहीं, तो क्या बन पाऊँगी?” माँ ने कुछ ...