Doctor sir ANM

दृश्य:प्रथम। अंक प्रथम।
इस कथानक के सभी कहानी तथ्य पूर्णतया काल्पनिक है___ लेखक
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जहरीला चलन [ दहेज प्रथा पर लिखी कहानी] लेखक - केदारनाथ भारतीय |
अविनाश के टूटे- फूटे कच्चे मकान के बाहर बैंड – बाजों सहित बारात का आगमन होने में बस कुछ ही समय शेष बचे हुए हैं।झालर - मोतियों से जगमगाता हुआ वह विपन्न सदन, स्वयं में अति सौंदर्य धारण किए हुए शांत स्वरूपों में मुस्कुरा रहा है। सेवाराम दो - तीन बुजुर्गों के साथ अविनाश के एक छोटे से ड्राइंग हाल में बैठा हुआ धीरे - धीरे चाय की चुस्कियां ले रहा है।सभी के सिरों में पगड़ियां बंधी हुईं हैं। उनके दाएं बाएं जवान लड़कों और छोटे मोटे चतुर बच्चों का आना - जाना जारी है।किसी के हाथों में बाल्टी है तो किसी के हाथों में जग और गिलाश है । एक या दो बच्चों के हाथों में चाय की केतलिया है।
आज यहां अविनाश की बहन रेखा का विवाहोत्सव है।वे रेखा के होने वाले ससुर है, जिनके चरित्रों में धन लोलुपता का वास है।
अभी द्वार - पूजा निमित्त बाराती गणों और दूल्हे के वैनों को रोके हुए
अविनाश के ड्राइंग हाल में कुछ जरूरी बाते करने हेतु आए हैं। अचानक अविनाश दिखाई पड़ जाते हैं।लड़की के भाई अविनाश को देखते ही सेवाराम उन्हें बुलाते हैं।
सेवाराम : [ कड़क आवाज में]
अविनाश! अरे ओ अविनाश ! जरा इधर तो आ ।
अविनाश: [ शीघ्र ही आना]
ज......जी बाबूजी ! कहिए क्या बात है।वैसे तो हम आपही के पास आ रहे थे।
सेवाराम: [ चौंकाते हुए]
हमारे पास आ रहे थे ।
अविनाश: हां बाबूजी ! आपको कोई दिक्कत न हो इसीलिए ।क्योंकि आज के दिन आप सब हमारे विशेष मेहमान है।
सेवाराम: [ हंसते हुए]
वो तो ठीक है बेटा..... लेकिन...!
अविनाश: लेकिन क्या बाबूजी ।
सेवाराम: [ आश्चर्य से]
अरब! भूल गए क्या वो सब बाते ..! अपनी बहन की शादी में जो कुछ दहेज माने थे वो सब भूल गए ।शादी होने से पहले अभी तक क्या - क्या दिया है तुमने।
अविनाश: आश्चर्य है बाबूजी ! ये भी कोई पूछने की बात है । हमने तो सब कुछ दे दिया है , जो एक कन्या - पक्ष से वर - पक्ष को दिया जाता है।
सेवाराम: [ सर हिलते हुए]
हुं! आखिर क्या - क्या दे दिया है, तुमने मुझे । जरा हमारे साथ में बैठे _ हमारे इन मित्रो को भी तो कुछ सुना दो।
अविनाश: [ विनम्रता से ]
बाबूजी ! ये क्या मजाक है । आप कहना क्या चाहते हैं।
सेवाराम: इसमें मजाक की कोई बात नहीं है अविनाश। अपने हाथों से दिए हुए कन्या दान की एक एक वस्तु गिना दो। ताकि हमे यह सदैव याद रहे ।
अविनाश: बाबूजी! शायद आप हमारा उपहास लेना चाह रहे हैं।क्योंकि कन्या दान की सारी वस्तुएं आपकी है, उसमें मेरा अब कोई अधिकार नहीं ,उसे आपही गिना सकते हैं कि हम क्या क्या पाए हैं।
सेवाराम: तुम अपनी मृदुल बातों से, मेरा मन नहीं मोह सकते अविनाश ।
अविनाश: ऐसी कोई बात नहीं! यदि आप जिद करते हैं तो सुन लीजिए, हमने अपनी बहन की शादी में एक कलर टीवी, सोने की हार, रेडियो - रिस्टवाच, 🚳 बाइक,और अंगूठी दिए है। किंतु नकदी रूपए नहीं दे पाए, उसके लिए हम क्षमा प्राथी हैं।
सेवाराम: यानी कि तुमने अपनी बहन की शादी में ,वह सब कुछ दे डाला है, जो तुम्हे देना चाहिए था। शायद अब तुम्हे कुछ भी नहीं देना है न । यही कहना चाहते हो।
अविनाश: हां बाबूजी! जो कुछ दिया हमने वो आपके कहने पर दिया। अपनी सामर्थ्य के अनुकूल, परिस्थिति से बैठाकर उसके दायरे में दिया है।
सेवाराम: [ चौंकाते हुए]
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जहरीला चलन [ दहेज प्रथा पर लिखी कहानी] लेखक - केदारनाथ भारतीय |
य.....यानी कि सारा दहेज चुकता हो गया।
अविनाश: पूरा ही समझिए बाबूजी! आखिर यह अंकिचन अब और क्या दे सकता है।अपनी बहन की शादी में वैसे ही सर्वे - सर्वा न्यौछावर हो चुका हुं।
सेवाराम: [ तैश में उठते हुए]
न्यौछावर और अंकिचन !...... कैसा न्योछावर! कैसा अंकिचन! मेरे उस पच्चास लाख को छोड़ दिया ' चिंतन '।जिसके नींव पर बंधा यह शादी का बंधन! चाहूं तो हो जाए इसी वक्त खंडन। ये शादी नहीं हो सकती।
अविनाश: [ हाथ जोड़कर]
न..... नहीं बाबूजी! ऐसा मत कीजिए ! वर कन्या को , सिर्फ आशीर्वाद दीजिए।
सेवाराम: आशिर्वाद के बच्चे शर्म नहीं आती तुम्हे।
" मीठी – मीठी बातों से, रसपान कराते जाते हो।
वादा किया जो पांचों में, तुम उसे भुलाए जाते हो।।"
अविनाश: [घुटनों के बल]
बाबूजी..….! " आपके कंटक गिराओ में, एक कड़ी फटकार है। सुनिए प्राथना अनाथ की, कुछ समयों की दरकार है।। "
सेवाराम: चुप रह धूर्तबाज !
तेरी ये लकड़ी – चुपड़ी बाते, अब मुझसे सहन नहीं होती।
बरगला रहे हो कब से, जिससे धड़कन बढ़ती जाती हैं।।
अविनाश: बाबूजी! मै धूर्तबाज नहीं....
पाई –पाई चुकता होगा, यह मेरा दृढ़ विचार है।
आपका पच्चास लाख है जो, वह मुझपे उधार है।।
सेवाराम: ठीक है, मुझे अब तेरी बात स्वीकार है।
अविनाश: [ हाथ जोड़कर]
यह आपका मुझपे उपकार है।
[ बीच में ]
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जहरीला चलन [ दहेज प्रथा पर लिखी कहानी] लेखक - केदारनाथ भारतीय |
एक बुड्ढा: [ सेवाराम से ]
स...... सुनिए सरकार , इन्हें कर दीजिए इनकार ।कही दहेज भी उधारी होता हैं।शादी हो गई तो गई! उधारी दहेज किससे अदा हुई है।
दूसरा बुड्ढा: उधारी की बात है,तो गारंटी और शर्त क्या है।
पहला बुड्ढा: [ सेवाराम से ]
तो इन्हें आप कितने दिनों तक की मोहलत दे रहे हो।
सेवाराम: ये सब अविनाश के ऊपर निर्भर है, भलाई इसी में है कि ये मुझसे कम से कम समय लेकर दहेज की रकम को चुकता कर दे।
अविनाश: हमे आपसे सिर्फ छः महीने का समय चाहिए बाबूजी! हम आज के छठवें महीने, रक्षाबंधन का जो त्यौहार आयेगा उसी त्यौहार पर हम आपका संपूर्ण ऋण चुकता कर देंगे ।हम आपकी प्यारी बहन को , आपके यहां से विदा कराएंगे। और अपनी इस कलाई पर बहन से राखी वंधवाएंगे ।
सेवाराम: ठीक है.... लेकिन इसके बीच यदि तुम अपनी बहन से मिलने आते हो तो रुपए का बंदोबस्त कर के ही आना ।
"अन्यथा खाली हाथ आए तो, तुम्हारा खैर नही होगा।
तुमसे नहीं तो, तुम्हारी उस बहन से बैर होगा।।"
अविनाश : ठीक है बाबूजी! हमे आपकी शर्ते स्वीकार है। अपने जो समय दिया, वह हम पे उपकार है।।
सेवाराम: तुम्हारे बहुत अच्छे और नेक विचार हैं। अब तेरी बहना का, मेरे बेटे पर अधिकार है।।
अविनाश: बाबूजी, हम आपके आदेशों पर तैयार है। अब हुक्म कीजिए आगे का मुझे उसका इंतजार है।।
सेवाराम: बेटे अविनाश ! तुम कितने समझदार लड़के हो ,मुझे अब पता चला। देखो बेटे ! विदाई का मुहूर्त निकल न जाए ,इसलिए मुहूर्त का विचार करके वधु की विदाई अति शीघ्र ही करा दिया जाय तो बेहतर होगा।
अविनाश: [जाते हुए]
ठीक है,बाबूजी! जैसा आपकी इच्छा ।[ अविनाश का जाना]
दृश्य में परिवर्तन
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जहरीला चलन [ दहेज प्रथा पर लिखी कहानी] लेखक - केदारनाथ भारतीय |
रेखा: [ रोते हुए ]
न.....नहीं भैया ! हम आपको अकेले छोड़कर कही नहीं जाएंगे...... नहीं जाएंगे......कही नहीं जाएंगे...... ही.ही.... ही.....!
अविनाश: [ गले लगते हुए भर्राकर]
बहन, ऐसा नहीं कहते ।चुप हो जा ,मत रो .... मत रो .... मत रो .... बहन ...क्या ऐसे रो - रोकर अपने भाई को भी रुलाएगी ।
बेटा जाओ ! जाओ ...जाओ मेरी लड़ो...अपने ससुराल जाओ।अब हमारी फिकर छोड़ दे।
हम तुम्हे याद आएंगे दीदी,
पर तुम मुझे न याद करना।
लेकिन सावन की रखी पे ,
राखी बंधवाने आऊंगा बहन।।
आशीष दे रहा यह भाई,
मेरी खुशियां तुझको लग जाए।
सारा दुख दर्द तुम्हारा,
बदले में हमको मिल जाए।।
रेखा: भ...भैया.....भ...भैया.....भ...भैया.....।
[ कुछ औरतें भाई बहन के प्रेम - प्रशंगो को देखकर द्रविभूत हो उठती है। रेखा को पालकी में किसी तरह से बैठाकर विदा करती है ।
अविनाश इधर दौड़ते हुए सेवाराम की तरफ आकर दोनों हाथ जोड़कर विनती करता है]
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जहरीला चलन [ दहेज प्रथा पर लिखी कहानी] लेखक - केदारनाथ भारतीय |
अविनाश: बाबूजी! कुछ कहना है।
सेवाराम: कहो अविनाश... आखिर बात क्या है, निःसंकोच बोलो।
अविनाश: बाबूजी!
हमने अपनी बहन को ,
बड़े ही नाजों से पाला है।
विद्या अध्ययन कराया है,
भरा नस - नस उजियला हैं।।
खरोच न लगने पाए उसको ,
वह छुई मुई की तरुवर है।
मै उसका हृदय स्पंदन हु,
वह मेरे प्राणों की डर है।।
सेवाराम: तुम, मुझे अपनी मीठी - मीठी बातों में फिर उलझाने लगे।
शादी तेरी बहना की ,
देख कितना सस्ता हुआ।
विश्वास की नींव पर,
कायम यह रिश्ता हुआ।।
वादा तुझसे कर रहा,
तेरी बहना खुशहाल रहे।
शर्ते हुई उधारी जो,
उसका तुझे ख्याल रहा।।
अविनाश:
बाबूजी! आपके शब्दों में,
रुपयों की तकरार है।
क्या यही आपका,
सबसे बड़ा प्यार है।।
स्वर्ग वहां सुख वैभव विहसें ,
जिस घर में हो प्यार।
नर्क सदा नित पैठ जमाए ,
जेहि कुल बाढ़ें तकरार।।
वह सदन - सदा दरिद में डूबे,
जिस गेह न हो गहनी सम्मान।
भावतु नहि कमला का आवन,
जेहि ड्योढी बाढ़ें अभिमान।।
सेवाराम:
मुझ बूढ़े को दुनियादारी,
अब न सिखला अविनाश।
खुशहाल रहेगी बहना तेरी,
इतना कर विश्वास।।
तेरी याचना निर्भर है,
उस पचास लाख के अर्थों पे।
आमोद - प्रमोद का जीवन होगा,
नित जारी इन पलको पे।।
अविनाश: [ पैर छूते हुए]
बाबूजी! मै आपका जीवन भर आभारी रहूंगा।
सेवाराम: तुम निश्चित रहो अविनाश। तुम्हारी बहना अब , राज बहु बनकर रहेगी हमारे घर। बहु की विदाई भी कर चुके हो अब हमें भी इजाजत दो।
अविनाश: हां बाबूजी!जरूर [ जेब से कुछ रुपए निकलते हुए] इसे रख लीजिए बाबूजी! [झुकते हुए पैर छूना]
सेवाराम: [ मुस्कुराते हुए रुपए लेना] कोई बात नहीं बेटा ..., चिरंजीवी भवः।l
जहरीला चलन [ दहेज प्रथा पर लिखी कहानी] लेखक - केदारनाथ भारतीय उर्फ भुवाल भारतीय [मसाढी]
हेलो दोस्तों,पहला भाग पूरा हुआ, लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। यह तो बस शुरुआत है। अब दूसरे भाग में वह मोड़ आएगा जो आपके दिलों को छू लेगा। तैयार हो जाइए ! कमेंट में जरूर बताएं कहानी कैसा लगा?
Nagendr bharatiy
Education for our society/www.magicalstorybynb.in
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