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मोहर्रम का इतिहास|The History of Muharram

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करबला की कहानी और इमाम हुसैन की अमर गाथा ✍️ लेखक: नागेन्द्र भारतीय 🌐 ब्लॉग: kedarkahani.in | magicalstorybynb.in कहते है, इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है — मोहर्रम। जब दुनियाभर में लोग नववर्ष का जश्न मनाते हैं, तब मुसलमान मोहर्रम की शुरुआत शोक और श्रद्धा के साथ करते हैं। यह महीना केवल समय का प्रतीक नहीं, बल्कि उस संघर्ष, बलिदान और उसूल की याद दिलाता है, जिसे इमाम हुसैन ने करबला की तपती ज़मीन पर अपने खून से सींचा था। मोहर्रम का अर्थ है — “वर्जित”, यानी ऐसा महीना जिसमें लड़ाई-झगड़े निषिद्ध हैं। लेकिन इतिहास ने इस महीने में ऐसी त्रासदी लिख दी, जो आज भी करोड़ों लोगों की आँखें नम कर देती है। 📜 मोहर्रम का इतिहास  🕋 इस्लामी महीनों में पवित्र मोहर्रम को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में गिना जाता है मुहर्रम, रजब, ज़ुल-क़ादा और ज़ुल-हिज्जा (या ज़िल-हिज्जा)। लेकिन मोहर्रम का विशेष महत्व इस बात से है कि इसमें करबला की त्रासदी हुई — एक ऐसा युद्ध जो केवल तलवारों का नहीं था, बल्कि विचारधारा और सिद्धांतों का संघर्ष था। करबला की कहानी इस्लाम के पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन एक ऐ...

The Punishment of a Careless Owner

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   धारा 289 'Indian constitution power ' भूमिका: शहर के एक छोटे से मोहल्ले में रवि नाम का एक आदमी रहता था। रवि को कुत्तों से बहुत प्यार था और उसने तीन बड़े और आक्रामक कुत्ते पाल रखे थे। हालांकि, वह अपनी जिम्मेदारियों को लेकर बिल्कुल लापरवाह था। उसके कुत्ते अक्सर बिना पट्टे के गली में दौड़ते रहते थे और लोगों को डराते थे। घटना: एक दिन मोहल्ले के बच्चे गली में खेल रहे थे। रवि के कुत्ते अचानक बाहर आ गए और बच्चों के पास दौड़ने लगे। बच्चे डरकर इधर-उधर भागने लगे। उनमें से एक बच्चा, सोनू, भागते समय गिर गया, और एक कुत्ते ने उसे काट लिया। सोनू का रोना सुनकर मोहल्ले के लोग इकट्ठा हो गए। सोनू के माता-पिता तुरंत उसे अस्पताल ले गए। घटना की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई। लोगों ने रवि से शिकायत की, लेकिन वह अपनी गलती मानने के बजाय गुस्से में उल्टा उन्हें ही दोष देने लगा। पुलिस की कार्रवाई: सोनू के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने IPC की धारा 289 के तहत रवि के खिलाफ मामला दर्ज किया। जांच के दौरान पता चला कि रवि अपने कुत्तों को खुले में छोड़ने की आदत से बाज नहीं आता था और इससे ...

तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा, (सुभाष चंद्र बोस का योगदान)

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तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा, (सुभाष चंद्र बोस का योगदान) तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आजादी दूंगा यह नारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया था। यह एक ऐसा वाक्य है जिसने भारतीयों में आजादी के लिए लड़ने की आग भड़का दी। यह नारा उनके अदम्य साहस, बलिदान और मातृभूमि के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक है। सुभाष चंद्र बोस एवं परिचय सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। वे एक विलक्षण विद्यार्थी थे और उनकी शिक्षा भारत के साथ-साथ विदेशों में भी हुई। उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन उन्होंने उस प्रतिष्ठित पद को त्याग दिया। उनका मानना था कि गुलाम भारत की सेवा करने से बेहतर है आजादी के लिए संघर्ष करना। 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का संदर्भ 1942 में सुभाष चंद्र बोस ने जापान और जर्मनी के सहयोग से आजाद हिंद फौज (Indian National Army) का गठन किया। उनकी इस सेना में हजारों भारतीय शामिल हुए। सुभाष चंद्र बोस ने भारतीयों से आह्वान किया कि अगर वे मातृभूमि की आजादी चाहते हैं, तो उन्हें अप...

बौद्ध धर्म का विस्तार

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भारत में बौद्ध धर्म का विस्तार भारत में बौद्ध धर्म का प्रारंभ से पतन तक बौद्ध धर्म का इतिहास किसी महान कहानी से कम नहीं है। यह कहानी है सत्य, करुणा और अहिंसा के मार्ग पर चलने की, जिसने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को बदलकर रख दिया। बौद्ध धर्म का विस्तार सिर्फ एक धार्मिक घटना नहीं, बल्कि मानवता के विकास का प्रतीक है। आइए इस प्रेरणादायक यात्रा को समझने की कोशिश करें। गौतम बुद्ध की शिक्षाओं की शुरुआत गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन के घर हुआ था। राजकुमार सिद्धार्थ ने राजसी सुखों को छोड़कर सत्य की खोज में जीवन समर्पित कर दिया। ज्ञान की खोज के बाद उन्हें बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे "बुद्ध" कहलाए। उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया, जो बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत बने। दुख का सत्य दुख के कारण का सत्य   दुख की समाप्ति का सत्य दुख समाप्त करने के मार्ग का सत्य बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए एक संघ की स्थापना की। संघ में उनके शिष्य और अनुयायी शामिल थे, जो धर्म प्रचार करते थे। यह सं...

जहरीला चलन भाग - 1[ दहेज प्रथा पर आधारित]

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  दृश्य:प्रथम।                     अंक प्रथम। इस कथानक के सभी कहानी तथ्य पूर्णतया काल्पनिक है___ लेखक जहरीला चलन [ दहेज प्रथा पर लिखी कहानी] लेखक - केदारनाथ भारतीय अविनाश  के टूटे- फूटे कच्चे मकान के बाहर बैंड – बाजों सहित बारात का आगमन होने में बस कुछ ही समय शेष बचे हुए हैं।झालर - मोतियों से जगमगाता हुआ वह विपन्न सदन, स्वयं में अति सौंदर्य धारण किए हुए शांत स्वरूपों में मुस्कुरा रहा है। सेवाराम दो - तीन बुजुर्गों के साथ अविनाश के एक छोटे से ड्राइंग हाल में बैठा हुआ धीरे - धीरे चाय की चुस्कियां ले रहा है।सभी के सिरों में पगड़ियां बंधी हुईं हैं। उनके दाएं बाएं जवान लड़कों और छोटे मोटे चतुर बच्चों का आना - जाना जारी है।किसी के हाथों में बाल्टी है तो किसी के हाथों में जग और गिलाश है । एक या दो बच्चों के हाथों में चाय की केतलिया है। आज यहां अविनाश की बहन रेखा का विवाहोत्सव है।वे रेखा के होने वाले ससुर है, जिनके चरित्रों में धन लोलुपता का वास है। अभी द्वार - पूजा  निमित्त बाराती गणों और दूल्हे के वैनों को रोके हुए  अव...

गंगा यमुना संगम

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  खूबसूरती का नजारा प्रयागराज प्रयागराज को ' तीर्थराज' क्यों कहा जाता है  ? प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारतीय संस्कृति, धर्म और इतिहास का महत्वपूर्ण केंद्र है। यह स्थान न केवल भारत के धार्मिक नक्शे पर प्रमुख है, बल्कि इसे तीर्थराज के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है, जो इसे विश्वभर के श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र स्थल बना देता है। आइए जानते हैं क्यों प्रयागराज को तीर्थराज क्यों कहा जाता है। त्रिवेणी संगम और उसकी महत्वता प्रयागराज का सबसे प्रमुख आकर्षण है त्रिवेणी संगम, जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदियाँ मिलती हैं। यह संगम स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहाँ के पवित्र जल में स्नान करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म के अनुयायी मानते हैं कि यहाँ स्नान करने से आत्मा को शांति मिलती है। यह स्थान हर साल लाखों भक्तों का आकर्षण बनता है, खासकर महाकुंभ और अर्धकुंभ मेले के दौरान। त्रिवेणी संगम को लेकर मान्यता है कि यह स्थल विश्व के सबसे पवित्र ...

भारत में राष्ट्रपति का पद सबसे ऊंचा क्यों है ?

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क्या भारत में राष्ट्रपति का पद सबसे ऊंचा है  ? Power of Indian constitution   भारत में राष्ट्रपति का पद संवैधानिक दृष्टि से सबसे ऊंचा माना जाता है। संविधान के अनुच्छेद 52 के अनुसार, "भारत में एक राष्ट्रपति होगा।" राष्ट्रपति देश के संवैधानिक प्रमुख और तीनों सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर होते हैं। उनके पास कई महत्वपूर्ण अधिकार हैं, लेकिन उनका हर कार्य प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधा हुआ होता है। यद्यपि राष्ट्रपति का पद गरिमा और प्रतिष्ठा का प्रतीक है, लेकिन उनके अधिकार सीमित हैं। असली शक्ति प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के पास होती है। इस लेख में, हम राष्ट्रपति के अधिकार, कर्तव्यों और उनकी सीमाओं को विस्तार से समझेंगे। राष्ट्रपति के अधिकार और कर्तव्य राष्ट्रपति के पास देश के शासन और प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ खास अधिकार और कर्तव्य हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:-  1. संसद का सत्र बुलाना और भंग करना राष्ट्रपति संसद का सत्र बुलाने और स्थगित या भंग करने का अधिकार रखते हैं। जब संसद में कोई विधेयक पास होता है, तो वह कानून तभी बनता है जब राष्ट्रपति उसे अपनी...

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