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मोहर्रम का इतिहास|The History of Muharram

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करबला की कहानी और इमाम हुसैन की अमर गाथा ✍️ लेखक: नागेन्द्र भारतीय 🌐 ब्लॉग: kedarkahani.in | magicalstorybynb.in कहते है, इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है — मोहर्रम। जब दुनियाभर में लोग नववर्ष का जश्न मनाते हैं, तब मुसलमान मोहर्रम की शुरुआत शोक और श्रद्धा के साथ करते हैं। यह महीना केवल समय का प्रतीक नहीं, बल्कि उस संघर्ष, बलिदान और उसूल की याद दिलाता है, जिसे इमाम हुसैन ने करबला की तपती ज़मीन पर अपने खून से सींचा था। मोहर्रम का अर्थ है — “वर्जित”, यानी ऐसा महीना जिसमें लड़ाई-झगड़े निषिद्ध हैं। लेकिन इतिहास ने इस महीने में ऐसी त्रासदी लिख दी, जो आज भी करोड़ों लोगों की आँखें नम कर देती है। 📜 मोहर्रम का इतिहास  🕋 इस्लामी महीनों में पवित्र मोहर्रम को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में गिना जाता है मुहर्रम, रजब, ज़ुल-क़ादा और ज़ुल-हिज्जा (या ज़िल-हिज्जा)। लेकिन मोहर्रम का विशेष महत्व इस बात से है कि इसमें करबला की त्रासदी हुई — एक ऐसा युद्ध जो केवल तलवारों का नहीं था, बल्कि विचारधारा और सिद्धांतों का संघर्ष था। करबला की कहानी इस्लाम के पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन एक ऐ...

तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा, (सुभाष चंद्र बोस का योगदान)

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तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा, (सुभाष चंद्र बोस का योगदान)




तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आजादी दूंगा

यह नारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया था। यह एक ऐसा वाक्य है जिसने भारतीयों में आजादी के लिए लड़ने की आग भड़का दी। यह नारा उनके अदम्य साहस, बलिदान और मातृभूमि के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक है।

सुभाष चंद्र बोस एवं परिचय

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। वे एक विलक्षण विद्यार्थी थे और उनकी शिक्षा भारत के साथ-साथ विदेशों में भी हुई। उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन उन्होंने उस प्रतिष्ठित पद को त्याग दिया। उनका मानना था कि गुलाम भारत की सेवा करने से बेहतर है आजादी के लिए संघर्ष करना।

'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का संदर्भ

1942 में सुभाष चंद्र बोस ने जापान और जर्मनी के सहयोग से आजाद हिंद फौज (Indian National Army) का गठन किया। उनकी इस सेना में हजारों भारतीय शामिल हुए। सुभाष चंद्र बोस ने भारतीयों से आह्वान किया कि अगर वे मातृभूमि की आजादी चाहते हैं, तो उन्हें अपने प्राणों का बलिदान देना होगा। उन्होंने कहा,

"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।"

इस नारे के पीछे उनकी मंशा यह थी कि देश को आजाद कराने के लिए सभी भारतीय अपने निजी स्वार्थ और आराम को छोड़कर, संघर्ष में अपना योगदान दें। यह वाक्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरणास्रोत बन गया।

आजाद हिंद फौज और उनकी रणनीति

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आजाद हिंद फौज

सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि भारत को स्वतंत्रता केवल अहिंसा से नहीं मिल सकती। महात्मा गांधी के विपरीत, उन्होंने सशस्त्र संघर्ष का रास्ता चुना। आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों के खिलाफ कई मोर्चे खोले। इस सेना में महिलाओं, पुरुषों और युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को वैश्विक मंच पर ले जाने का प्रयास किया। उन्होंने रेडियो पर भाषण देकर विदेशों में बसे भारतीयों को भी आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

बलिदान और देशप्रेम का प्रतीक

सुभाष चंद्र बोस का जीवन बलिदान और देशप्रेम का आदर्श उदाहरण है। उन्होंने कभी व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं की परवाह नहीं की। उन्होंने भारतीय युवाओं को यह सिखाया कि आजादी मुफ्त में नहीं मिलती; इसके लिए संघर्ष, साहस और बलिदान की आवश्यकता होती है।

तुम मुझे खून दो' का महत्व

इस नारे ने भारतीयों को यह एहसास कराया कि आजादी के लिए अपने खून-पसीने की कुर्बानी देनी होगी। यह केवल एक वाक्य नहीं था, बल्कि एक प्रेरणा थी, जो हर भारतीय को स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करती थी।

सुभाष चंद्र बोस की विरासत

सुभाष चंद्र बोस का जीवन और उनके विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उन्होंने दिखाया कि देश की आजादी से बढ़कर कुछ नहीं है। उनके संघर्ष और बलिदान की गाथा हर भारतीय के दिल में जिंदा है।

प्रिय पाठ्य गण 

'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' केवल एक नारा नहीं था; यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का मंत्र बन गया। इसने करोड़ों भारतीयों में नया जोश और साहस भरा। आजादी की कीमत समझने और हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद रखने के लिए हमें इस नारे और सुभाष चंद्र बोस के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।

यह नारा हमें यह सिखाता है कि जब तक हम अपने स्वार्थों को त्यागकर समाज और देश के लिए बलिदान देने को तैयार नहीं होंगे, तब तक कोई भी बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं की जा सकती। सुभाष चंद्र बोस के इस महान विचार को हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए और उनकी प्रेरणा से अपने देश को और मजबूत बनाना चाहिए।

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