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मोहर्रम का इतिहास|The History of Muharram

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करबला की कहानी और इमाम हुसैन की अमर गाथा ✍️ लेखक: नागेन्द्र भारतीय 🌐 ब्लॉग: kedarkahani.in | magicalstorybynb.in कहते है, इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है — मोहर्रम। जब दुनियाभर में लोग नववर्ष का जश्न मनाते हैं, तब मुसलमान मोहर्रम की शुरुआत शोक और श्रद्धा के साथ करते हैं। यह महीना केवल समय का प्रतीक नहीं, बल्कि उस संघर्ष, बलिदान और उसूल की याद दिलाता है, जिसे इमाम हुसैन ने करबला की तपती ज़मीन पर अपने खून से सींचा था। मोहर्रम का अर्थ है — “वर्जित”, यानी ऐसा महीना जिसमें लड़ाई-झगड़े निषिद्ध हैं। लेकिन इतिहास ने इस महीने में ऐसी त्रासदी लिख दी, जो आज भी करोड़ों लोगों की आँखें नम कर देती है। 📜 मोहर्रम का इतिहास  🕋 इस्लामी महीनों में पवित्र मोहर्रम को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में गिना जाता है मुहर्रम, रजब, ज़ुल-क़ादा और ज़ुल-हिज्जा (या ज़िल-हिज्जा)। लेकिन मोहर्रम का विशेष महत्व इस बात से है कि इसमें करबला की त्रासदी हुई — एक ऐसा युद्ध जो केवल तलवारों का नहीं था, बल्कि विचारधारा और सिद्धांतों का संघर्ष था। करबला की कहानी इस्लाम के पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन एक ऐ...

समय का जादू: जब इतिहास से मिट गए 11 दिन ! "Give us our eleven days!"


जब कैलेंडर से गायब हो गए 11 दिन

इतिहास के पन्नों में सितंबर 1752 एक ऐसा महीना है, जो दुनियाभर के कैलेंडर इतिहास में अनोखी जगह रखता है। इस महीने में एक ऐसा अद्भुत परिवर्तन हुआ, जिसने समय और तारीखों को गहराई से प्रभावित किया। आइए समझते हैं कि आखिर सितंबर 1752 में ऐसा क्या हुआ था, जिसने इसे इतिहास के महत्वपूर्ण महीनों में शामिल कर दिया।

जूलियन कैलेंडर से ग्रेगोरियन कैलेंडर तक का सफर 

प्राचीन रोम के समय से जूलियन कैलेंडर का उपयोग हो रहा था, जिसे 46 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर ने लागू किया था। इस कैलेंडर ने सूर्य वर्ष को 365 दिन और 6 घंटे का मान दिया। हालांकि, इसमें एक छोटी सी खामी थी: यह असल सौर वर्ष से करीब 11 मिनट और 14 सेकंड लंबा था। यह त्रुटि छोटी दिखती है, लेकिन सदियों में यह बड़ी समस्या बन गई।

इस त्रुटि के कारण, हर 128 साल में कैलेंडर 1 दिन आगे बढ़ जाता था। यह धार्मिक और खगोलीय घटनाओं जैसे ईस्टर (ईस्टर पूर्णिमा) के समय निर्धारण में बाधा डालने लगा। 16वीं सदी तक, ईस्टर असल तारीख से 10 दिन आगे बढ़ चुका था।

ग्रेगोरियन कैलेंडर की शुरुआत 

इस समस्या का समाधान 1582 में पोप ग्रेगरी XIII ने किया। उन्होंने एक नए कैलेंडर, ग्रेगोरियन कैलेंडर, को लागू किया। इसमें 10 दिनों को हटाकर समय का सुधार किया गया और शताब्दियों के दौरान अतिरिक्त दिनों को संभालने के लिए लीप वर्ष का नियम बदला गया।

ग्रेगोरियन कैलेंडर ने 4 से विभाज्य शताब्दियों (जैसे 1600, 2000) को लीप वर्ष घोषित किया, लेकिन 100 से विभाज्य शताब्दियां (जैसे 1700, 1800, 1900) लीप वर्ष नहीं होतीं, सिवाय उनके जो 400 से भी विभाज्य हों।

ब्रिटेन और उसके उपनिवेशों में परिवर्तन 

ग्रेगोरियन कैलेंडर को 1582 में यूरोप के कई कैथोलिक देशों ने अपनाया, लेकिन प्रोटेस्टेंट देश जैसे इंग्लैंड इसे अपनाने में हिचकिचा रहे थे। इस वजह से ब्रिटेन और उसके उपनिवेश, जिनमें भारत भी शामिल था, जूलियन कैलेंडर का उपयोग करते रहे।

1750 में ब्रिटिश संसद ने कैलेंडर (नया स्टाइल) एक्ट 1750 पास किया। इसके तहत, सितंबर 1752 में ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाने का निर्णय लिया गया। इस प्रक्रिया के तहत 2 सितंबर 1752 के बाद सीधे 14 सितंबर 1752 आया। इस तरह, कैलेंडर से 11 दिन "गायब" हो गए।

11 दिनों का गायब होना जो सितंबर 1752 का कैलेंडर इस प्रकार था।

1 सितंबर के बाद 2 सितंबर आया।

इसके तुरंत बाद, 14 सितंबर दर्ज किया गया।

इन 11 दिनों के गायब होने से लोगों में काफी भ्रम और असंतोष पैदा हुआ। कुछ लोगों को लगा कि उनकी जिंदगी के 11 दिन उनसे छीन लिए गए हैं। इसे लेकर विरोध प्रदर्शन हुए, और एक नारा प्रसिद्ध हुआ। "Give us our eleven days!"

समाज और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

कैलेंडर में बदलाव ने न केवल लोगों की धार्मिक मान्यताओं को प्रभावित किया, बल्कि व्यावसायिक और कृषि गतिविधियों को भी।

  •  त्योहारों और धार्मिक तिथियों में बदलाव :

ईस्टर और अन्य धार्मिक पर्वों की तिथियां फिर से तय करनी पड़ीं। कई लोग नई तिथियों को मानने को तैयार नहीं थे।

  •  वेतन और कर प्रणाली पर प्रभाव :

चूंकि कामगारों को पूरे महीने का वेतन मिलता था, लेकिन सितंबर 1752 में केवल 19 दिन थे, इससे मजदूरों को लगा कि उनके साथ अन्याय हुआ है।

  •  कृषि पर असर :

किसानों को अपनी फसल की बुआई और कटाई के समय को फिर से निर्धारित करना पड़ा।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण 

ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाने का एक बड़ा कारण वैज्ञानिक सटीकता थी। यह खगोलीय घटनाओं और सौर वर्ष के साथ अधिक तालमेल रखता है। इसके बिना, समय और तिथियों का निर्धारण जटिल हो जाता।

दुनिया भर में ग्रेगोरियन कैलेंडर का प्रसार 

ब्रिटेन और उसके उपनिवेशों के बाद, धीरे-धीरे बाकी देशों ने भी इसे अपनाया। रूस ने 1918 में, चीन ने 1949 में, और भारत ने 1752 में ब्रिटिश शासन के तहत इसे अपनाया। आज, ग्रेगोरियन कैलेंडर वैश्विक मानक बन चुका है।

आधुनिक समय में इसकी प्रासंगिकता

सितंबर 1752 का यह परिवर्तन केवल एक कैलेंडर सुधार नहीं था; यह वैज्ञानिक और सामाजिक प्रगति का प्रतीक था। इसने दिखाया कि समय और तिथियों का निर्धारण केवल परंपरा पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे खगोलीय सत्य के अनुरूप होना चाहिए।


दोस्तों! हालांकि सितंबर 1752 इतिहास का वह महीना है, जिसने हमें यह सिखाया कि बदलाव, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, आवश्यक होता है। जूलियन से ग्रेगोरियन कैलेंडर का यह परिवर्तन आज भी हमें वैज्ञानिक सोच, नवाचार, और समाज के साथ सामंजस्य का महत्व समझाता है।

जब भी आप अपने कैलेंडर को देखें, तो याद रखें कि यह वही प्रणाली है, जिसने दुनिया को समय के साथ तालमेल बिठाने में मदद की।

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                               ।। धन्यवाद ।।


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