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मोहर्रम का इतिहास|The History of Muharram

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करबला की कहानी और इमाम हुसैन की अमर गाथा ✍️ लेखक: नागेन्द्र भारतीय 🌐 ब्लॉग: kedarkahani.in | magicalstorybynb.in कहते है, इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है — मोहर्रम। जब दुनियाभर में लोग नववर्ष का जश्न मनाते हैं, तब मुसलमान मोहर्रम की शुरुआत शोक और श्रद्धा के साथ करते हैं। यह महीना केवल समय का प्रतीक नहीं, बल्कि उस संघर्ष, बलिदान और उसूल की याद दिलाता है, जिसे इमाम हुसैन ने करबला की तपती ज़मीन पर अपने खून से सींचा था। मोहर्रम का अर्थ है — “वर्जित”, यानी ऐसा महीना जिसमें लड़ाई-झगड़े निषिद्ध हैं। लेकिन इतिहास ने इस महीने में ऐसी त्रासदी लिख दी, जो आज भी करोड़ों लोगों की आँखें नम कर देती है। 📜 मोहर्रम का इतिहास  🕋 इस्लामी महीनों में पवित्र मोहर्रम को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में गिना जाता है मुहर्रम, रजब, ज़ुल-क़ादा और ज़ुल-हिज्जा (या ज़िल-हिज्जा)। लेकिन मोहर्रम का विशेष महत्व इस बात से है कि इसमें करबला की त्रासदी हुई — एक ऐसा युद्ध जो केवल तलवारों का नहीं था, बल्कि विचारधारा और सिद्धांतों का संघर्ष था। करबला की कहानी इस्लाम के पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन एक ऐ...

सबसे लंबी फिल्म 'लॉजिस्टिक्स', कला, समय और धैर्य का संगम । The Longest Film 'Logistics', A Fusion of Art, Time, and Patience.



दुनिया में फिल्में सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि यह कला, विचार और कल्पना का प्रतीक भी हैं। आम तौर पर एक फिल्म 2-3 घंटे की होती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि एक फिल्म 857 घंटे लंबी हो सकती है ? यह पढ़कर आश्चर्य होगा, लेकिन स्वीडन की फिल्म 'लॉजिस्टिक्स' (Logistics) ने इसे सच कर दिखाया है। यह फिल्म अब तक की सबसे लंबी फिल्म है और अपने अनूठे विषय और प्रस्तुति के कारण एक अद्वितीय उदाहरण बन गई है।

दोस्तो हम इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि यह फिल्म क्यों और कैसे बनाई गई, इसका उद्देश्य क्या था, और यह सिनेमा के इतिहास में क्यों खास है।

'लॉजिस्टिक्स' क्या है ?

'लॉजिस्टिक्स' स्वीडन के दो फिल्म निर्माताओं, एरिका मैग्नसन और डेनियल एंडरसन, द्वारा बनाई गई एक डॉक्यूमेंटरी है। इसे 2012 में रिलीज़ किया गया था। इस फिल्म की लंबाई 857 घंटे, यानी 35 दिन और 17 घंटे है।

फिल्म का प्लॉट बहुत अनोखा और सरल है। यह एक पोर्टेबल पेडोमीटर (एक कदम गिनने वाला उपकरण) के उत्पादन की पूरी प्रक्रिया को दिखाती है। फिल्म में दिखाया गया है कि यह पेडोमीटर कैसे डिज़ाइन किया गया, कहां इसका निर्माण हुआ, और अंततः यह ग्राहकों तक कैसे पहुंचा।

सबसे खास बात यह है कि फिल्म "रिवर्स टाइमलाइन" में चलती है। इसका मतलब है कि कहानी वहां से शुरू होती है, जहां ग्राहक इसे इस्तेमाल कर रहा होता है, और फिर पीछे की ओर समय यात्रा करती है—विनिर्माण, पैकेजिंग, और कच्चे माल की प्राप्ति तक।

फिल्म का उद्देश्य 

'लॉजिस्टिक्स' केवल मनोरंजन के लिए नहीं बनाई गई थी। इसे एक विचारोत्तेजक कला परियोजना के रूप में देखा जा सकता है। फिल्म का उद्देश्य लोगों को यह दिखाना था कि रोज़मर्रा की चीज़ें जो हम इस्तेमाल करते हैं, उनके पीछे कितना बड़ा और जटिल सप्लाई चेन है।

यह फिल्म उपभोक्तावाद पर एक सवाल उठाती है। क्या हमें सच में उन चीज़ों की ज़रूरत है, जिन्हें हम खरीदते हैं ? क्या हम उनके उत्पादन और परिवहन से जुड़े संसाधनों और पर्यावरणीय प्रभाव को समझते हैं ?

फिल्म निर्माताओं ने बताया कि वे दर्शकों को यह महसूस कराना चाहते थे कि हमारे उपभोग के तरीके कैसे हमारे ग्रह को प्रभावित करते हैं।

फिल्म कैसे बनाई गई ?

'लॉजिस्टिक्स' को बनाना एक आसान काम नहीं था। फिल्म की शूटिंग एक "रिवर्स जर्नी" पर आधारित थी।

  •  शुरुआत का दृश्य :

फिल्म वहां से शुरू होती है, जहां ग्राहक पेडोमीटर का उपयोग कर रहा होता है।

  •  प्रोडक्शन प्रोसेस का अनुसरण :

इसके बाद, फिल्म इस उपकरण के वितरण, पैकेजिंग, और निर्माण प्रक्रिया को रिवर्स में दिखाती है।

  • कच्चे माल का स्रोत :

फिल्म अंततः चीन के एक फैक्ट्री तक जाती है, जहां इसका उत्पादन होता है, और फिर उस माइनिंग स्थल तक पहुंचती है, जहां इसका कच्चा माल निकाला गया था।

  •  फिल्माने का तरीका :

शूटिंग वास्तविक समय (रियल टाइम) में की गई थी। यानी जो भी प्रक्रिया चल रही थी, उसे उतनी ही लंबी अवधि में फिल्माया गया।

फिल्म क्यों खास है ?

'लॉजिस्टिक्स' को खास बनाने वाले कई कारण हैं ।

  • सबसे लंबी फिल्म :

यह अब तक की सबसे लंबी फिल्म है। इसे देखने के लिए एक व्यक्ति को बिना रुके पूरे 35 दिन से अधिक का समय चाहिए।

  •  अनूठा विषय :

सामान्य फिल्मों की तरह इसमें कोई नायक, खलनायक, या कहानी नहीं है। यह एक यथार्थवादी फिल्म है जो उपभोक्तावाद और लॉजिस्टिक्स के जटिल ढांचे को समझाने पर केंद्रित है।

  •  सोचने पर मजबूर करने वाला दृष्टिकोण ।

यह फिल्म उपभोक्तावादी संस्कृति पर सवाल उठाती है। क्या हम उन वस्तुओं के उत्पादन के बारे में जानते हैं, जो हम खरीदते हैं ?

  •  आधुनिक कला का उदाहरण।

'लॉजिस्टिक्स' को पारंपरिक सिनेमा की तुलना में एक कला परियोजना के रूप में देखा जा सकता है। इसे देखकर दर्शक समय, धैर्य और उत्पादन प्रक्रिया के प्रति जागरूक होते हैं।

  • 'लॉजिस्टिक्स' को देखने का अनुभव


फिल्म को देखना हर किसी के लिए संभव नहीं है। इसे रियल टाइम में फिल्माया गया था, और इसे देखने के लिए आपको 857 घंटे का समय चाहिए। यह फिल्म किसी थिएटर या ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देखने के लिए उपलब्ध नहीं है। इसे केवल विशेष प्रदर्शनी या फिल्म समारोहों में देखा जा सकता है।

कई आलोचकों का कहना है कि यह फिल्म उन लोगों के लिए है, जो सिनेमा को सिर्फ मनोरंजन के बजाय कला और विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम मानते हैं।

फिल्म पर प्रतिक्रियाएं 

'लॉजिस्टिक्स' को दर्शकों और आलोचकों से मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिलीं।

  • प्रशंसा :

इसे एक अनूठी अवधारणा और कला का बेहतरीन उदाहरण माना गया।

फिल्म ने उपभोक्तावाद और पर्यावरणीय प्रभाव जैसे गंभीर मुद्दों को नई दृष्टि से पेश किया।

  • आलोचना :

कई लोगों ने इसे "उबाऊ" कहा, क्योंकि यह सामान्य सिनेमा से बिल्कुल अलग है।

कुछ का मानना है कि इतनी लंबी फिल्म बनाना समय और संसाधनों की बर्बादी है।

'लॉजिस्टिक्स' से क्या सीख सकते हैं ?

'लॉजिस्टिक्स' केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक अध्ययन का विषय है। यह हमें हमारी उपभोक्तावादी आदतों, समय की महत्ता, और जीवन के प्रति हमारी दृष्टि पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है।

उपभोक्तावाद का प्रभाव :

यह फिल्म हमें सिखाती है कि हमें हर वस्तु को खरीदने से पहले उसके उत्पादन और पर्यावरणीय प्रभाव को समझने की जरूरत है।

धैर्य का महत्व :

857 घंटे की फिल्म बनाना और देखना दोनों ही धैर्य की पराकाष्ठा है। यह दर्शाता है कि कला और विचार समय मांगते हैं।

अर्थपूर्ण सिनेमा :

'लॉजिस्टिक्स' इस बात का उदाहरण है कि सिनेमा केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है। यह गहन विषयों को प्रस्तुत करने का एक माध्यम भी है।

दोस्तो 'लॉजिस्टिक्स' केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक अनुभव है जो हमें समय, उत्पादन और उपभोग के बारे में सोचने पर मजबूर करता है। यह फिल्म सिनेमा की सीमाओं को तोड़ती है और इसे कला और विचार का माध्यम बनाती है।

भले ही इसे देखने का धैर्य हर किसी के पास न हो, लेकिन इसके पीछे छिपा संदेश हर किसी को समझने की जरूरत है। अगर हम अपनी आदतों और प्राथमिकताओं में छोटे-छोटे बदलाव करें, तो न केवल अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।

क्या आप 'लॉजिस्टिक्स' जैसी फिल्म देखने का साहस करेंगे ? यह फैसला आपका है।

Hi दोस्तों कमेंट में जरूर बताएं।

                                       ।।धन्यवाद।।

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