मोहर्रम का इतिहास|The History of Muharram

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A story of love, struggle, and self-confidence..." |
गाँव की गलियों में सन्नाटा था। हर दरवाज़ा, हर खिड़की, हर निगाह जैसे सुमन और अविनाश के बारे में जानती थी, मगर चुप थी। अब दोनों के लिए केवल सपने काफी नहीं थे—उन्हें हिम्मत और रास्तों की भी जरूरत थी।
सुमन ने घर में कैद रहते हुए भी हार नहीं मानी। उसने अपनी पुरानी नोटबुक्स छुपाकर रखी थी। जैसे ही मौका मिलता, वह रात में चुपचाप छत पर जाकर पढ़ाई करती। उस शांत अंधेरे में, उसके भीतर उम्मीद की रौशनी जलती रहती।
उधर अविनाश भी खेत में काम करने के बाद बचे हुए समय में जी-जान से पढ़ाई करता। उसकी आँखों के नीचे गहरे काले घेरे बन गए थे, पर उसकी आत्मा थकी नहीं थी।
एक शाम, गाँव में एक नए स्कूल का उद्घाटन हुआ। सुमन को यह खबर सुनते ही उम्मीद की एक किरण दिखी। उसने अपनी माँ से आग्रह किया, “अम्मा, मुझे फिर से स्कूल जाना है। अगर पढ़ूँगी नहीं, तो क्या बन पाऊँगी?”
माँ ने कुछ नहीं कहा, बस उसके सिर पर हाथ रख दिया। उस स्पर्श में मौन समर्थन था।
अविनाश को भी स्कूल से जुड़ी एक सूचना मिली—गाँव के टॉप छात्रों को शहर के कॉलेज में स्कॉलरशिप मिल सकती थी। यह सुनते ही उसकी आँखें चमक उठीं।
अब एक बार फिर दोनों की राहें शिक्षा के मैदान में जुड़ने लगीं।
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एक दिन सुमन अपनी किताबों के साथ स्कूल जा रही थी, तभी उसे रास्ते में अविनाश मिल गया। दोनों की आँखों में वही चिरपरिचित चमक थी।
“तैयारी कैसी चल रही है?” सुमन ने पूछा।
“खून-पसीना एक कर रहा हूँ,” अविनाश ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, “बस यह लड़ाई है अपने लिए, हम सबके लिए।”
“जानती हूँ,” सुमन बोली, “अगर हम जीत गए, तो हम सिर्फ अपने लिए नहीं, गाँव की सोच के लिए भी कुछ बदलेंगे।”
धीरे-धीरे दिन बीतते गए। परीक्षा का दिन आया। पूरे गाँव में खामोशी थी, जैसे कोई बड़ा तूफान आने वाला हो।
परीक्षा खत्म हुई। अब इंतज़ार था उस नतीजे का, जो उनके भविष्य की दिशा तय करेगा।
अंततः परिणाम का दिन आया। गाँव की पंचायत भवन के बाहर, जहाँ लिस्ट लगी थी, भीड़ उमड़ पड़ी थी।
अविनाश की आँखें तेज़ी से नामों में ढूंढने लगीं। और फिर...
"मैं पास हो गया!" अविनाश चिल्लाया।
फिर कुछ ही सेकंड बाद एक और आवाज़ गूंजी—“मुझे भी स्कॉलरशिप मिली!” सुमन की।
लोग चकित थे। गाँव के उस लड़के और लड़की ने, जिनके सपनों पर कभी हँसी उड़ाई जाती थी, आज वही लोग तालियाँ बजा रहे थे।
लेकिन यह तो बस शुरुआत थी।
अब सवाल था—क्या वे गाँव छोड़कर अपने सपनों के शहर जा पाएँगे? क्या सुमन के पिता उसे जाने देंगे? और क्या समाज उनके बढ़ते रिश्ते को सह पाएगा?
जारी रहेगा…
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