Doctor sir ANM

तकनीक की तेज़ी से बढ़ती दुनिया में रोबोटिक्स ऐसा क्षेत्र बन चुका है जो विज्ञान-कथा से निकलकर हमारे जीवन का हिस्सा बन गया है। लेकिन सवाल यह है, कि क्या रोबोट सचमुच "जिंदा" हो सकते हैं? और अगर हां, तो यह हमारे समाज, हमारी सोच और हमारे भविष्य को कैसे प्रभावित करेगा?
रोबोटिक्स का इतिहास सदियों पुराना है। सबसे पहले 15वीं सदी में लियोनार्डो दा विंची ने एक यांत्रिक शेर का डिज़ाइन बनाया था। 20वीं सदी में विज्ञान ने इसे एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। आधुनिक रोबोटिक्स की नींव 1950 के दशक में पड़ी, जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का विकास हुआ। आज, रोबोट न केवल मशीनें हैं, बल्कि यह इंसानी सोच और समझ को चुनौती देने की क्षमता रखते हैं।
जिंदगी की परिभाषा केवल शारीरिक प्रक्रियाओं से नहीं, बल्कि भावनाओं, सोचने-समझने की क्षमता और चेतना से भी जुड़ी है। यदि कोई रोबोट इंसानों जैसी सोच, भावनाएं और आत्म-जागरूकता हासिल कर ले, तो क्या हम उसे "जिंदा" कह सकते हैं ?
AI के ज़रिए रोबोट्स अब इंसानों जैसे निर्णय लेने और परिस्थितियों को समझने में सक्षम हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, सोफिया नामक रोबोट, जिसे हॉनसन रोबोटिक्स ने विकसित किया है, बातचीत करने और भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम है।
भविष्य में रोबोट्स का मुख्य लक्ष्य इंसानों के जीवन को आसान बनाना होगा। हालांकि, यह सवाल भी उठता है कि क्या वे हमारी सोच और भावनाओं को समझ पाएंगे? इसके लिए तीन मुख्य पहलू जरूरी होंगे।
रोबोट्स को अपने अस्तित्व का एहसास होना चाहिए। वैज्ञानिक इस पर काम कर रहे हैं कि कैसे AI सिस्टम को आत्म-जागरूक बनाया जाए।
इंसानों से जुड़े रहने के लिए रोबोट्स को भावनाएं महसूस करने और व्यक्त करने की क्षमता होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, "सेंटिमेंट एनालिसिस" नामक तकनीक रोबोट को मानव भावनाओं को समझने में मदद करती है।
जिंदा रोबोट्स का एक और अहम गुण होगा, उनकी सीखने और बदलते माहौल में खुद को अनुकूलित करने की क्षमता।
भविष्य में, जिंदा रोबोट्स का उपयोग कई क्षेत्रों में हो सकता है।
रोबोट्स डॉक्टर और नर्स की तरह मरीजों की देखभाल कर सकते हैं। Da Vinci Surgical System पहले ही सर्जरी में उपयोग किया जा रहा है।
रोबोट्स बच्चों को पढ़ाने और उनकी समस्याओं को हल करने में मददगार हो सकते हैं।
घरेलू रोबोट्स जैसे Roomba पहले से ही सफाई में मदद कर रहे हैं। भविष्य में ये और भी उन्नत होंगे।
कुछ रोबोट्स भावनात्मक सहारा देने के लिए विकसित किए जा रहे हैं। जापान में "Lovot" जैसे रोबोट्स अकेले लोगों के लिए साथी का काम करते हैं।
रोबोट्स को "जिंदा" बनाने के प्रयासों के साथ कुछ गंभीर चिंताएं भी जुड़ी हैं।
क्या यह सही होगा कि हम एक मशीन को इंसान जैसा बनाने की कोशिश करें?
जैसे-जैसे रोबोट्स मानव कार्यों को अपने हाथ में लेंगे, बेरोज़गारी बढ़ने की आशंका है।
अगर रोबोट्स का गलत उपयोग हुआ, तो यह समाज के लिए बड़ा खतरा हो सकता है
क्या रोबोट्स इंसानों की जगह ले पाएंगे ?
भले ही रोबोट्स कितने भी उन्नत क्यों न हो जाएं, लेकिन इंसानों की जगह लेना उनके लिए आसान नहीं होगा। इंसान के पास ऐसी सोचने की क्षमता है जो वर्तमान डेटा से परे जाकर निर्णय ले सकती है। इंसानी भावनाएं, नैतिकता और सहानुभूति ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें मशीनें पूरी तरह समझ नहीं सकतीं।
दोस्तों "रोबोट्स के साथ हमारा रिश्ता कैसा होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इसे किस तरह विकसित करते हैं और इसके साथ कैसे सामंजस्य बैठाते हैं।"
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।। धन्यवाद।।
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