मोहर्रम का इतिहास|The History of Muharram

दृश्य द्वितीय। अंक प्रथम
इस कथानक के सभी कहानी तथ्य पूर्णतया काल्पनिक है___ लेखक - केदारनाथ भारतीय
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जहरीला चलन कहानी (दहेज प्रथा पर आधारित) भाग - 2 https://www.magicalstorybynb.in/2025/01/blog-post.html |
वह सुंदर सा कमरा चारों तरफ से अनेकों फूलों के सुगंधों एवं इत्रो से भरा पड़ा है। रेखा सजी - संवरी पलंग पर न बैठकर बगल में चटाई पर बैठी हुई, अपने मन के सावनरियाँ { सुनील} के इंतजार में पलक – पांवड़े बिछाए पी – पिपासनी की भांति शांत आसीन हैं। नवासत – भूषण साजे मुखमंडल तीव्र आभा से दमक रहा है। किंतु लाल चुनरियों में लिपटी वह किसी गुड़ियों की भांति सुमन शरीके खिली हुई, कल्पनाओं के व्योम – मंडल में बिना पंख लगाए ही उड़ रही है। पूर्ण रुपेड उसका चांद जैसा मुखड़ा घुंघट में तिरोहित है और तभी चुपके से वहां सुनील का प्रवेश होना।
सुनील: [आश्चर्य में देखते ही चौंकना]
अरे.....! अरे.....! ये क्या देख रहा हूं।आश्चर्य है, इक्कीसवीं सदी की यह सुहागिन नायिका, प्रथम मिलन की बेला में, सुहाग सेज पर न बैठकर एक तुच्छ चटाई पर बैठी है।
रेखा: [ उठते हुए]
स्वामी! आपके इन चरण कमलों में, आपकी यह अर्द्धांगिनी, आपको कोटि - कोटि प्रणाम करती हैं।
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