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माँ का अधूरा सपना

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यह कहानी माँ के सपनों और संघर्ष की प्रेरणादायक कहानी है। पढ़िए यह भावनात्मक माँ पर कहानी हिंदी में। जब माँ मुस्कुराती है, तो सारी परेशानियाँ छोटी लगती हैं।  बचपन की खुशबू कितनी अजीब बात है — जब हम बड़े होते हैं तो हमें अपने बचपन की खुशबू याद आने लगती है। आदित्य भी अब वही महसूस कर रहा था। वह दिल्ली की भीड़ में फँसा एक छोटा सा आदमी था, लेकिन उसके मन में एक गाँव बसता था — जहाँ उसकी माँ रहती थी। आदित्य के लिए माँ सिर्फ़ एक रिश्ता नहीं थी, बल्कि उसका पूरा संसार थी। जब वह छोटा था, माँ हर सुबह उसे जगाते हुए कहती — “बेटा, एक दिन तू बड़ा आदमी बनेगा।” उस समय आदित्य को हँसी आती थी। उसे लगता था — माँ बस मनाने के लिए कहती है। पर अब वही बात उसकी आँखों में आँसू बनकर उतर आती थी।  संघर्ष और माँ का त्याग आदित्य का बचपन गरीबी में बीता। माँ ने कभी अपनी भूख की परवाह नहीं की। वह खेतों में मजदूरी करती, फिर घर आकर रोटी बनाती, और बेटे की कॉपी-किताबें दुरुस्त करती। कभी-कभी बिजली नहीं होती, तो वह दीए की रोशनी में बेटे को पढ़ाती। माँ का सपना था कि आदित्य “अफसर” बने। पर हालात इतने कठिन थे कि स्कूल की फीस ...

भारत और थाईलैंड – दो राष्ट्र, एक आत्मा|India and Thailand – Two Nations, One Soul.

 

India and Thailand – Two Nations, One Soul.
भारत और थाईलैंड – दो राष्ट्र, एक आत्मा

भारत और थाईलैंड के रिश्ते केवल राजनयिक संवाद नहीं, बल्कि दिलों के तारों से जुड़ी वह परंपरा हैं जो हज़ारों वर्षों से चली आ रही हैं। इन संबंधों की नींव सभ्यता, संस्कृति और आस्था में गहराई से धँसी हुई है। और हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थाईलैंड यात्रा ने इस ऐतिहासिक बंधन को एक नई ऊर्जा दी है।

जब हम भारत-थाईलैंड की साझेदारी की बात करते हैं, तो इतिहास खुद बोल उठता है। बौद्ध धर्म की पहली किरण जब भारत से निकली, तो थाईलैंड तक पहुँची और आज तक वहाँ उजास बनकर व्याप्त है। थाईलैंड में प्रचलित थेरवाद बौद्ध परंपरा की जड़ें सीधा भारत की भूमि से जुड़ी हैं – वह भूमि जहाँ सिद्धार्थ गौतम ने बुद्धत्व पाया और जहाँ उनका अंतिम निर्वाण हुआ।

थाई संस्कृति में भारत की छाप सिर्फ बौद्ध धर्म तक सीमित नहीं है। रामायण, जिसे थाईलैंड में रामाकियन कहा जाता है, वहाँ की नाट्य परंपरा, चित्रकला और त्योहारों में आत्मसात हो चुकी है। मंदिरों की बनावट, भाषा में संस्कृत और पाली का प्रभाव, और परंपराओं में भारतीय गंध साफ महसूस होती है।

प्रधानमंत्री मोदी की ऐतिहासिक यात्रा

2025 की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थाईलैंड यात्रा ने इस सांस्कृतिक सेतु को और भी मजबूत किया। बैंकॉक में आयोजित ASEAN और BIMSTEC बैठकों के दौरान मोदी ने न केवल रणनीतिक और आर्थिक विषयों पर चर्चा की, बल्कि भारत-थाईलैंड की आध्यात्मिक साझेदारी को भी प्रमुखता दी।

मोदी ने थाई बौद्ध भिक्षुओं और भारतीय मूल के समुदाय से संवाद करते हुए कहा है कि - 

 "भारत और थाईलैंड का रिश्ता व्यापार से नहीं, विश्वास से बना है। यह रिश्ता राजनीति का नहीं, संस्कृति का है।"

उनके इस कथन ने न केवल दोनों देशों के नागरिकों का दिल छुआ, बल्कि यह सिद्ध किया कि आज भारत की विदेश नीति में संस्कृति और आध्यात्मिकता भी कूटनीति के प्रमुख स्तंभ हैं।

नेतृत्व, जो केवल प्रशासन नहीं, परंपरा भी संभालता है

मोदी का थाईलैंड में हुआ स्वागत दर्शाता है कि भारत केवल लोकतंत्र का नहीं, सांस्कृतिक धरोहर का भी अगुआ है। युवाओं में मोदी की लोकप्रियता इस बात का संकेत है कि भारत वैश्विक मंच पर अब केवल सुनने वाला नहीं, सुनाया जाने वाला बन चुका है।

भारत-थाईलैंड संबंधों की गहराई को समझने के लिए हमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ओर देखना होगा। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बोस ने आजाद हिंद फौज का पुनर्गठन थाईलैंड, बर्मा और सिंगापुर से किया। बैंकॉक और सैंगख्ला जैसे क्षेत्रों में बोस ने जो समर्थन पाया, वह भारत की आज़ादी की गाथा में थाईलैंड के योगदान को अमर कर देता है।

थाईलैंड में आज भी नेताजी की याद में कार्यक्रम आयोजित होते हैं। उनकी दृढ़ता, उनकी देशभक्ति, और एशिया में स्वतंत्रता के लिए उनका सपना – आज भारत-थाईलैंड संबंधों की प्रेरणा है।

इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच डिजिटल कनेक्टिविटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, टूरिज्म और समुद्री सुरक्षा जैसे विषयों पर कई समझौते हुए। भारत की Act East Policy और थाईलैंड की Look West Policy अब परस्पर सहयोग की रीढ़ बन रही हैं।

विशेषकर स्पिरिचुअल टूरिज्म पर किया गया जोर, दोनों देशों की साझा विरासत को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का प्रयास है। बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाएं बढ़ाने और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को सहयोग देने की घोषणा की गई।

थाईलैंड में बसे हजारों भारतीय मूल के लोग, वहाँ के व्यापार, चिकित्सा, शिक्षा और सेवाक्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। यह समुदाय भारत और थाईलैंड के बीच एक जीवंत पुल की तरह है – जो दोनों देशों को न केवल जोड़ता है, बल्कि एक-दूसरे को समझने और अपनाने में सहायक है।

जब थाईलैंड की एक युवा प्रतिनिधि ने ससम्मान मोदी की ओर देखा और मुस्कुरा दी, तो वह सिर्फ शिष्टाचार नहीं था – वह उस आत्मीयता की अभिव्यक्ति थी, जो सदियों से भारत और थाईलैंड के संबंधों में रची-बसी है।

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